हिंदी कविता सुनने से एक अलग सी ख़ुशी मिलती है| हिंदी कविता की अपनी अद्वितीय मिठास है| हाल ही में मैं ‘मशाल’ नामक एक लेखकों के संगठन में शामिल हुई हूँ| पहले मै हिंदी में कवितायेँ लिखती थी, परन्तु मैंने लंबे समय के लिए अंग्रेजी में लिखना शुरू किया| मशाल के वजह से मैंने फिरसे हिंदी में लिखना शुरू किया है|
आजकल मै मधुशाला, दिनकर, और निराला पढ़ रही हूँ ताकि मै स्वयं को हिंदी साहित्य से परिचित करवाऊं|
कुछ दिन पहले ही मैंने मनोज बाजपेयी का वीडियो देखा जिसमे उन्होंने बढ़ी खूबसूरती से रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘रश्मिरथी’ को सुनाया है |
मेरी नयी कविता का शीर्षक है ‘मेरी आकांक्षा’ | आशा करती हूँ आपको मेरी कविता पसंद आएगी ||
मेरी आकांक्षा
काश मैं पंछी बन उड़ जाऊं ,
खुले आसमान का लुत्फ़ उठाऊं ।
क्यों लगाती खुद पर बंदिश,
बुझाती रहती मन की आतिश ।
काश मैं बचपन में फिर जाऊं,
मन का सारा मैल धो पाऊँ
लोभ, द्वेष मन को करती आकर्षित,
मैं खुद को अपने से अलग क्यों सोचती?
क्या है मेरा अस्तित्व, जीने का क्या है महत्व?
कैसी है यह जीवन की दुविधा,
जो मै पहचान न पायी मेरी आकांक्षा !
शुक्रिया आपने अपना कीमती वक़्त निकालके मेरी कविता को सराहा, धन्यवाद |